10 सकारात्मक आदतें सफल जीवन के लिए (10 Positive Habits for Successful Life)

यहाँ हम कुछ अच्छी और सकारात्मक (Positive) आदतों के बारे में बात करेंगे, जो आप इस नए साल में संकल्प लेकर कुछ अच्छी आदतों को अपने जीवन में अपनाएं और यकीन रखिए ये छोटी – छोटी आदतें आने वाले साल में एक बड़ा बदलाव लेकर आयेगी आपके जीवन में और यही आदतें आपको सफलता (Success) अर्जित करने में सबसे ज्यादा मददगार होगी ।

हम यहाँ 10 सकारात्मक आदतें (Good Habits) लिख रहे है आपको इस में से कुछ आदतें अपने जीवन में अपनाने का संकल्प लेना है ।

1 – सुबह जल्दी उठना । (Wake up Early)

Good Habits में सबसे प्राथमिक है यह आदत, सुबह जल्दी उठने के बहुत फायदे है आप एक बार इस आदत को अपना कर देखे और ये आपके पूरे जीवन को बदल देगी । इसका सकारात्मक परिणाम आप सिर्फ एक महीने में ही देख सकेंगे ।

2 – ध्यान, योग और व्यायाम करना ।  (Do Meditation, Yoga and Exercise)

ध्यान के बारे में जितनी बात करे उतनी कम है, यह वो खजाना है जो आपके जीवन को सुख, शांति और सफलता से तर-बतर करने की शक्ति रखता है, योग और व्यायाम से आप हमेशा युवा और ऊर्जावान रहेंगे ।

3 – किताबें पढ़ना । (Read Positive Books)

हर दिन 30 मिनट कुछ अच्छा सकारात्मक पढ़ें, आपके आत्मविकास में सबसे उपयोगी कोई आदत है तो वो है सकारात्मक पुस्तकें यह आदत आपका दृष्टिकोण और पूरी Personality बदल के रख देगी ।

4 – बुरी आदतों को छोड़ें । (Quit bad habits)

तम्बाकू, बीडी, सिगरेट, जंक फूड का अगर आप सेवन करते हो तो इस चीजों को त्याग करे और कोई भी खराब आदत हो जैसे बात बात पर गुस्सा करना, किसी की बुराई या ईर्षा करना इन सब बुरी आदतों को हमें संकल्प लेकर जड़ मूल से उखाड़ फेंकना है ।

5 – समय बर्बादी से बचना । (Avoid Wasting Time)

फ़ालतू में Whatsapp, Facebook और Internet के उपयोग से बचे, ज्यादा टीवी देखने से भी बचे, बिना मतलब की  चर्चा से दूर रहे और अपना पूरा समय अपने Goal Achieve करने में लगाए ।

6 – अपना लक्ष्य तय करना । (Set Your Goal)

आप एक साल बाद अपने आप को कहा देखना चाहते है यह सुनिश्चित कर Goal (लक्ष्य) तय करो और इस Goal को अपनी Inspirational (प्रेरणा) बनाकर हर रोज काम करे हर रोज अपने लक्ष्य तरफ आगे बढ़े ।

7 – अपने परिवार के लिए समय निकाले । (Spend Some Time With Family)

रोज़ सुबह या शाम अपने परिवार के साथ बैठकर चर्चा करे, इससे आपका पारिवारिक जीवन सुखी समृद्ध और सफल होने के साथ आप एक अच्छे पिता, माता, भाई, बहन और बेटी बन पायेंगे ।

8 – पूर्वाग्रहों, आग्रहों का विसर्जन करे । (Forgot Past)

बीते सालों में कोई भी नकारात्मक घटना आपके दिलों दिमाग में घर कर चुकी हो या किसी के साथ आपके संबंध खराब हुये है तो आप उस घटना को भूल कर एक नई शुरुआत करे ।

9 – किसी की मुस्कान बने । (Make Someone Smile)

इस नए साल में हम संकल्प करे कि हमारे आसपास के लोगों की हम निस्वार्थ भाव से मदद करे और किसी के चेहरे पे मुस्कान लाने में कामयाब हो ।

10 – सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाएं । (Be Positive)

नए साल में हम नकारात्मक दृष्टिकोण को त्याग कर सकारात्मक सोच अपनाएं और जो होता है वो अच्छा होता है मानकर हम हर मुश्किलों में हर विफलताओं में हर आपतियों में हम अवसर खोजें और आगे बढ़े ।

यहाँ हमने कुछ अच्छी आदतें लिखी है आप इनमें से कुछ आदतों को अपने जीवन में स्थान दे और इस दीवाली पे परिवर्तन और सफलता की एक नयी शुरुआत करे ।

हमने यहाँ कोशिश की है की अच्छी आदतों को आपके सामने रखे, फिर भी कोई अच्छी आदत छूट गयी हो या आपके जीवन में किसी आदत ने आपका जीवन बदल दिया हो तो कृपया Comment में ज़रुर लिखे ।

हमें आशा है की यह संकल्प की दीवाली आपके जीवन में एक सकारात्मक बदलाव लाएगी और आप खुश हो सुखी हो स्वस्थ हो और सफल हो ऐसी मेरी मनोकामना एवं भगवान से प्रार्थना है । धन्यवाद. 🙂


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FIFA U-17 World Cup 2017: जानिए पूरा शेड्यूल, किस ग्रुप में है कौन सी टीम, कौन-कब होगा आमने-सामने

FIFA Under 17 World Cup 2017 India Schedule: मेजबान देश होने के नाते भारत को इस मुकाबले में खेलने का अवसर मिला है।

    भारतीय अंडर-17 फुटबॉल टीम का अमेरिकी टीम से मैच शुक्रवार शाम को होगा। (फाइल फोटो)

FIFA U-17 World Cup 2017 Schedule: शुक्रवार (छह अक्टूबर) से फीफा अंडर-17 फुटबॉल विश्व कप शुरू हो रहा है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नई दिल्ली में मुकाबले का शुभारम्भ करेंगे। इस साल फीफा अंडर-17 विश्व कप की मेजबानी भारत कर रहा है। मेजबान देश होने के कारण भारत को मुकाबले में खेलने का मौका मिला है। टूर्नामेंट के पहले दिन ही भारत का मुकाबला अमेरिका से होगा। ये मैच नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में शाम आठ बजे होगा। किसी भी आयु वर्ग में पहली बार भारतीय टीम फीफा के मुकाबले में खेल रही है। इसलिए भारत के लिए ये मुकाबला काफी अहम है। टूर्नामेंट में कुल 24 टीमें हिस्सा ले रही हैं जिन्हें छह ग्रुप (वर्ग) में बांटा गया है। देश के छह अलग-अलग शहरों में फीफा अंडर-17 विश्व कप के मैच होंगे। मुकाबले में हिस्सा ले रही 24 में से 16 टीमें दूसरे दौर में पहुंचेंगी। फीफा अंडर 17 विश्व कप का फाइनल 28 अक्टूबर को होगा। फीफा अंडर-17 विश्व कप हर दो साल पर होता है। साल 2015 में नाइजीरिया ने माली को हराकर कप जीता था। लेकिन इस बार नाइजीरिया मुकाबले के लिए क्वालिफाई नहीं कर पाया। आइए आपको बताते हैं कि इस टूर्नामेंट से जुड़ी हर अहम जानकारी। आप प्रतियोगिता में शामिल टीमों के नाम, ग्रुप, उनके मैच की तारीख और समय जान सकते हैं।

ग्रुप ए की टीमें- भारत, अमेरिका, कोलंबिया और घाना

ग्रुप ए में शामिल घाना 1990 के दशक में दो बार फीफा अंडर-17 विश्व कप जीत चुका है। वो साल 2007 में मुकाबले में चौथे स्थान पर रहा था। पिछले एक दशक में ये उसका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। वहीं ग्रुप ए में शामिल कोलंबिया साल 2009 में चौथे स्थान पर रहा था। इस ग्रुप की सबसे कमजोर टीम भारत ही मानी जा रही है लेकिन फीफा के मुकाबले में पहला मैच खेल रही टीम अपने घरेलू मैदान पर अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने की कोशिश करेगी। इसलिए अगर वो अटकलों को झूठा साबित कर दे तो किसी को हैरत नहीं होनी चाहिए।

ग्रुप बी की टीमें- पैराग्वे, माली, न्यूजीलैंड और तुर्की

ग्रुप बी में शामिल माली साल 2015 के फीफा अंडर-17 विश्व कप की उप-विजेता रही थी। इस ग्रुप में तुर्की भी है जो एशिया की मजबूत टीमों में शुमार होती है।

ग्रुप सी की टीमें- ईरान, गिनी, जर्मनी और कोस्टा रिका

ग्रुप सी में सबसे मजबूत टीम जर्मनी मानी जा रही है। जर्मनी फीफा अंडर-17 विश्व कप 1985 का विजेता रहा है। साल 2007 और 2011 में वो तीसरे स्थान पर रहा था। इस ग्रुप में शामिल कोस्टा रिका पर भी सबकी नजर रहेगी। छोटे से देश कोस्टा रिका की टीम फीफा अंडर-17 विश्व कप में साल 2001 से 2007 तक चार बार क्वार्टर फाइनल तक पहुंची थी।

ग्रुप डी की टीमें- कोरिया डीपीआर, नाइजर, ब्राजील और स्पेन
ग्रुप डी में सबकी निगाहें ब्राजील और स्पेन की टीम पर होंगी। अपनी राष्ट्रीय टीमों की तरह अंडर-17 फुटबॉल में भी ये दोनों ही देश सबसे मजबूत दावेदार माने जाते हैं। ब्राजील अब तक तीन बार फीफा अंडर-17 विश्व कप जीत चुका है। वहीं स्पेन तीन बार फीफा अंडर-17 विश्व कप में उप-विजेता रहा है।

ग्रुप ई की टीमें- हॉन्डुरस, जापान, न्यू कैलेडोनिया और फ्रांस

ग्रुप ई में सबसे दमदार टीमें जापान और फ्रांस की मानी जा रही हैं। फ्रांस साल 2001 के फीफा अंडर-17 विश्व कप का विजेता रह चुका है। फ्रांस ने अभी साल पहला अंडर-17 यूरोपीय कप जीता था। ऐसे में वो इस साल भी जीत के प्रबल दावेदारों में माना जा रहा है। जापान अभी तक फीफा अंडर-17 विश्व कप नहीं जीत सका लेकिन उसके स्टार फुटबॉलर ताकेफुसा कुबो पर सबकी निगाहें रहेंगी।

ग्रुप एफ की टीमें- इराक, मेक्सिको, चिली और इंग्लैंड

ग्रुप एफ में सबसे तगड़ी टीम इंग्लैंड और मेक्सिको की मानी जा रही हैं। मेक्सिको साल 2005 और साल 2011 में फीफा अंडर-17 विश्व कप जीत चुका है। साल 2015 में मेक्सिको चौथे स्थान पर रहा था। उससे पहले साल 2013 के फीफा अंडर-17 विश्व कप में वो रजत पदक विजेता था। वहीं इंग्लैंड की टीम एंजल गोम्स, फिल फोडेन और जाडोन सांचो की तिकड़ी की वजह से सुर्खियों में है।

नीचे पढ़ें हर ग्रुप के मैचों का टाइम-टेबल-

शुक्रवार (छह अक्टूबर)-

ग्रुप ए- नई दिल्ली- शाम पांच बजे- कोलंबिया बनाम घाना

ग्रुप बी- नवी मुंबई- शाम पांच बजे- नवी मुंबई- न्यूजीलैंड बनाम तुर्की

ग्रुप ए- नई दिल्ली- रात आठ बजे- भारत बनाम अमेरिका

ग्रुप बी- नवी मुंबई- शाम आठ बजे- पैराग्वे बनाम माली

शनिवार (सात अक्टूबर)-

ग्रुप सी- गोवा- शाम पांच बजे- जर्मनी बनाम कोस्टारिका

ग्रुप डी – कोच्चि- शाम पांच बजे- ब्राजील बनाम स्पेन

ग्रुप सी- गोवा- शाम आठ बजे- ईरान बनाम गिनी

ग्रुप डी- कोच्चि- शाम आठ बजे- कोरिया डीपीआर बनाम नाइजर

रविवार (आठ अक्टूबर)-

ग्रुप ई- गुवाहाटी- शाम पांच बजे- न्यू कैलेडोनिया बनाम फ्रांस

ग्रुप एफ- कोलकाता- शाम पांच बजे- चिली बनाम इंग्लैंड

ग्रुप ई- गुवाहाटी- शाम आठ बजे- हॉन्डुरस बनाम जापान

ग्रुप एफ- कोलकाता- शाम आठ बजे- इराक बनाम मेक्सिको

सोमवार (नौ अक्टूबर)-

ग्रुप ए- नई दिल्ली- शाम पांच बजे- घाना बनाम अमेरिका

ग्रुप बी- नवी मुंबई – शाम पांच बजे- तुर्की बनाम माली

ग्रुप ए- नई दिल्ली- शाम आठ बजे- भारत बनाम कोलंबिया

ग्रुप बी- नवी मुंबई- शाम आठ बजे- पैराग्वे बनाम इंग्लैंड

मंगलवार (10 अक्टूबर)-

ग्रुप सी- गोवा- शाम पांच बजे- कोस्टारिका बनाम गिनी

ग्रुप डी- कोच्चि- शाम पांच बजे- स्पेन बनाम नाइजर

ग्रुप सी- शाम आठ बजे- ईरान बनाम जर्मनी

ग्रुप डी- शाम आठ बजे- कोरिया डीपीआर बनाम ब्राजील

बुधवार (11 अक्टूबर)-

ग्रुप ई- गुवाहाटी- शाम पांच बजे- फ्रांस बनाम जापान

ग्रुप एफ- कोलकाता- – शाम पांच बजे- इंग्लैंड बनाम मेक्सिको

ग्रुप ई- गुवाहाटी- शाम आठ बजे- हॉन्डुरस बनाम न्यू कैलेडोनिया

ग्रुप एफ- कोलकाता- शाम आठ बजे- इराक बनाम चिली

गुरुवार (12 अक्टूबर)-

ग्रुप बी- नई दिल्ली- शाम पांच बजे- माली बनाम न्यूजीलैंड

ग्रुप बी- नवी मुंबई- शाम पांच बजे- तुर्की बनाम पैराग्वे

ग्रुप ए- नई दिल्ली- रात आठ बजे- घाना बनाम भारत

ग्रुप ए- नवी मुंबई- रात आठ बजे- अमेरिका बनाम कोलंबिया

शुक्रवार (13 अक्टूबर)-

ग्रुप सी- गोवा- शाम पांच बजे- कोस्टारिका बनाम ईरान

ग्रुप सी- कोच्चि- शाम पांच बजे- गिनी बनाम जर्मनी

ग्रुप डी- गोवा- शाम आठ बजे- नाइजर बनाम ब्राजली

ग्रुप डी- कोच्चि-शाम आठ बजे- स्पेन बनाम कोरिया डीपीआर

शनिवार (14 अक्टूबर)-

ग्रुप ई- गुवाहाटी- शाम पांच बजे- फ्रांस बनाम हॉन्डुरस

ग्रुप ई- कोलकाता- शाम पांच बजे- जापान बनाम न्यू कैलेडोनिया

ग्रुप एफ- गुवाहाट- शाम आठ बजे- मेक्सिको बनाम चिली

ग्रुप एफ- कोलकाता- शाम आठ बजे- इंग्लैंड बनाम इराक

फीफा अंडर-17 विश्व कप के दूसरे राउण्ड के मैच 16 अक्टूबर से शुरू होंगे। दूसरे राउण्ड में केवल 16 टीमें ही पहुंच सकेंगी। अंतिम 16 टीमों में हर ग्रुप की शीर्ष दो टीमों के अलावा अपने-अपने ग्रुप में तीसरे स्थान पर रही छह टीमों में से चार शीर्ष टीमें पहुंचेंगी। इन 16 में से आठ टीमें क्वार्टर फाइनल में और उनमें से चार टीमें सेमी फाइनल में पहुंचेंगी।  16, 17 और 18 अक्टूबर को राउंड ऑफ 16 के मुकाबले होंगे। 21 और 22 अक्टूबर को क्वार्टर फाइनल मैच होंगे। 25 अक्टूबर को सेमी फाइनल मैच होंगे। 28 अक्टूबर को शाम पांच बजे कोलकाता में तीसरे स्थान के लिए मैच होगा। 28 अक्टूबर को कोलकाता में ही रात आठ बजे शीर्ष दो टीमों के बीच फाइनल होगा।

HAPPY DIWALI

Swachh Bharat Abhiyan: Can We Follow a Green Diwali This Year?

October 13, 2017
by BABLOO KUMAR RAJ

Celebrate Green Diwali this year

One of the most awaited festivals in India and abroad for Indian Hindus is Diwali. Diwali always falls on the darkest night of the year and that is why we illuminate everything around us with lights and diyas on this day. We follow the age-old tradition of offering our prayers to Goddess Laxmi and welcoming her to our nicely decorated homes. And yes, how can we forget the tradition of burning of fire crackers on this day? The sounds of the crackers fill the air, the lights illuminate the sky and our homes and there is happiness all around. Sounds great, isn’it? Like everyone else, I also look forward to this day every year. But, this festival is also associated with some harmful effects on the environment.

Impact of Diwali on the Environment and the Society

  • Air pollution: The fun of Diwali lies in bursting of firecrackers. And the result is tremendous air pollution. The already polluted cities of our country get more air polluted on this day. Burning of fire crackers releases toxic gases and pollutants in the air like as sulphur dioxide, carbon dioxide, carbon monoxide etc. This, in turn, causes air-polluted diseases like asthma and bronchitis. The elderly and children are affected. Also the animals and birds. It also creates smog which leads to reduced visibility in the nights after Diwali.
  • Noise pollution: Not only dust and smoke, bursting of firecrackers leads to noise pollution which is equally harmful and affect the sick old people, the patients in the hospitals. In extreme cases, noise pollution can lead to hear loss, high blood pressure and insomnia. Animals and birds are also very badly affected during Diwali by the loud sounds of crackers.
  • Child Labour: While we enjoy burning crackers, we should not forget that most of the crackers are prepared by young children who work as labourers in the factories. These crackers are prepared using hazardous substances, chemicals and acids. In the process, they fall sick due to harmful fumes, they burn their legs, hands and eyes, and they work in very shabby conditions at a very low wage.
  • Consumption of Energy: Using of electric lights and bulbs is a trend these days in Diwali. Not only homes, business establishments, offices, shops, monuments and roads are also decorated with electric lights, much before Diwali and even after that. The result is heavy load on electrical energy sources and consumption of huge amount of electricity.
  • Garbage all around: How can we forget about the garbage and litter that gather on the roads, in our localities just after Diwali? The quantity of garbage released after Diwali is very high. Last year, in Delhi alone, approximately 4,000 additional metric tonnes of garbage were released. Double the amount in Mumbai. This garbage is hazardous as it includes sulphur, phosphorous, potassium chlorate, and burnt paper of the fire crackers. Not only that, you also find empty sweet boxes, gift wrappers, dried flowers all across the roads.
  • Accidents and Burns: Last but not the least, we cannot ignore the minor and major accidents that take place on Diwali, including the burn injuries. Over 40% of burn injuries are of children below 14 years of age. According to a report, around 10,000 people get injured by the crackers every year. There are minor injuries which are not recorded but cause great pain to the victims.

Government of India’s Legal Steps

  • Right to Peaceful Sleep is a fundamental right of every citizen of the country. Considering this, the Supreme Court of India has banned bursting of crackers after 10 pm during the Diwali festival. Same is applicable for Dussehra and other festivals too.
  • There is a decibel limit fixed for firecrackers at the maximum of 125dB, under the Encironment Protection Act, 1986.
  • The Central Pollution Control Board (CPCB) has banned fire-crackers whose dB level is more than 125 at a distance of 4 meters from the point where they are burned.
  • Also, loudspeakers cannot be used after 10:00 pm and the offenders can face 5 years of jail or Rs. 1 lakh as fine.

Swachh Bharat Abhiyan and Green Diwali We always talk of keeping our environment clean. But, then again, we are the only ones who pollute it. Swachh Bharat Abhiyan launched on 2nd October 2014 stresses on a Clean India. Prime Minister has appealed to each and every one of us to maintain cleanliness in our homes and localities. Under these circumstances, I wonder how people are going to celebrate Diwali this time, when this is one festival which creates the maximum pollution in a year just, that too, within a short duration.

Can we follow a Green Diwali this time? Green Diwali is not a new concept. Keeping the impact of environmental pollution in mind, it should be our duty to play an environmental friendly and green diwali this time. And it is not that tough. If we have the will, we can do it.

  • First of all, let us replace the electric lights by burning earthen lamps or diyas. The age old tradition is much better than the new trend of decorating homes with electric lights. No doubt, this consumes more oil but there will be less pollution as the duration of the diyas is shorter. Plus, it looks beautiful.
  • I know, it is easy to say “stop bursting fire crackers” but in reality it is difficult to do so. After all, how can we stop all of a sudden an age-old tradition? It is better to purchase crackers from legal shops, where the packets are properly labelled with the manufacturer’s name, the instructions, the name of the item, including the decibel level.
  • Nowadays, environmental friendly crackers are also available which produce less smoke and sound.
  • Reduce the amount of purchase of fire crackers than you usually do.
  • Select a common open space in your locality to burst crackers with all friends, family members and others from your community. Try lighting noiseless crackers.
  • Make sure to clean that area the very next day and throw the garbage in the allocated space.
  • Make rangolis using ingredients available in our homes and kitchen shelves like as rice powder for white, turmeric or pulses for yellow, sindoor for red, including fresh flowers.

By observing an environment friendly Green Diwali, we as citizens of this country, can make our little contribution towards the society, the environment as well as Swachh Bharat Abhiyan.

About chhath puja

नहीं जानते होंगे, छठ पर्व की शुरुआत आखिर कैसे हुई?

story of chhat puja
आज कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि है। यह दिन भगवान सूर्य को समर्पित है। बिहार और पूर्वांचल के निवासी इस दिन जहां भी होते हैं सूर्य भगवान की पूजा करना और उन्हें अर्घ्य देना नहीं भूलते।

यही कारण है कि आज यह पर्व बिहार और पूर्वांचल की सीमा से निकलकर देश विदेश में मनाया जाने लगा है। चार दिनों तक चलने वाला यह पर्व बड़ा ही कठिन है।

इसमें शरीर और मन को पूरी तरह साधना पड़ता है इसलिए इसे पर्व को हठयोग भी माना जाता है। इस कठिन पर्व की शुरुआत कैसे हुई और किसने इस पर्व को शुरु किया इस विषय में अलग-अलग मान्यताएं हैं।

छठ पर्व छठ, षष्ठी का अपभ्रंश है। कार्तिक मास की अमावस्या को दीवाली मनाने के बाद मनाये जाने वाले इस चार दिवसीय व्रत की सबसे कठिन और महत्त्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल षष्ठी की होती है। कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को यह व्रत मनाये जाने के कारण इसका नामकरण छठ व्रत पड़ा। [5]

लोक आस्था का पर्व – छठ

भारत में सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व है छठ। मूलत: सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है। यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है। पारिवारिक सुख-समृद्धी तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है। स्त्री और पुरुष समान रूप से इस पर्व को मनाते हैं। छठ व्रत के सम्बन्ध में अनेक कथाएँ प्रचलित हैं; उनमें से एक कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गये, तब श्री कृष्ण द्वारा बताये जाने पर द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। तब उनकी मनोकामनाएँ पूरी हुईं तथा पांडवों को राजपाट वापस मिला। लोक परम्परा के अनुसार सूर्यदेव और छठी मइया का सम्बन्ध भाई-बहन का है। लोक मातृका षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने ही की थी। छठ पर्व को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो षष्ठी तिथि (छठ) को एक विशेष खगोलीय परिवर्तन होता है, इस समय सूर्य की पराबैगनी किरणें (Ultra Violet Rays) पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं इस कारण इसके सम्भावित कुप्रभावों से मानव की यथासम्भव रक्षा करने का सामर्थ्य प्राप्त होता है। पर्व पालन से सूर्य (तारा) प्रकाश (पराबैगनी किरण) के हानिकारक प्रभाव से जीवों की रक्षा सम्भव है। पृथ्वी के जीवों को इससे बहुत लाभ मिलता है। सूर्य के प्रकाश के साथ उसकी पराबैगनी किरण भी चंद्रमा और पृथ्वी पर आती हैं। सूर्य का प्रकाश जब पृथ्वी पर पहुँचता है, तो पहले वायुमंडल मिलता है। वायुमंडल में प्रवेश करने पर उसे आयन मंडल मिलता है। पराबैगनी किरणों का उपयोग कर वायुमंडल अपने ऑक्सीजन तत्त्व को संश्लेषित कर उसे उसके एलोट्रोप ओजोन में बदल देता है। इस क्रिया द्वारा सूर्य की पराबैगनी किरणों का अधिकांश भाग पृथ्वी के वायुमंडल में ही अवशोषित हो जाता है। पृथ्वी की सतह पर केवल उसका नगण्य भाग ही पहुँच पाता है। सामान्य अवस्था में पृथ्वी की सतह पर पहुँचने वाली पराबैगनी किरण की मात्रा मनुष्यों या जीवों के सहन करने की सीमा में होती है। अत: सामान्य अवस्था में मनुष्यों पर उसका कोई विशेष हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि उस धूप द्वारा हानिकारक कीटाणु मर जाते हैं, जिससे मनुष्य या जीवन को लाभ होता है।[कृपया उद्धरण जोड़ें] छठ जैसी खगोलीय स्थिति (चंद्रमा और पृथ्वी के भ्रमण तलों की सम रेखा के दोनों छोरों पर) सूर्य की पराबैगनी किरणें कुछ चंद्र सतह से परावर्तित तथा कुछ गोलीय अपवर्तित होती हुई, पृथ्वी पर पुन: सामान्य से अधिक मात्रा में पहुँच जाती हैं। वायुमंडल के स्तरों से आवर्तित होती हुई, सूर्यास्त तथा सूर्योदय को यह और भी सघन हो जाती है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार यह घटना कार्तिक तथा चैत्र मास की अमावस्या के छ: दिन उपरान्त आती है। ज्योतिषीय गणना पर आधारित होने के कारण इसका नाम और कुछ नहीं, बल्कि छठ पर्व ही रखा गया है।

छठ पर्व किस प्रकार मनाते हैं ?

यह पर्व चार दिनों का है। भैयादूज के तीसरे दिन से यह आरम्भ होता है। पहले दिन सेन्धा नमक, घी से बना हुआ अरवा चावल और कद्दू की सब्जी प्रसाद के रूप में ली जाती है। अगले दिन से उपवास आरम्भ होता है। व्रति दिनभर अन्न-जल त्याग कर शाम करीब ७ बजे से खीर बनाकर, पूजा करने के उपरान्त प्रसाद ग्रहण करते हैं, जिसे खरना कहते हैं। तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य यानी दूध अर्पण करते हैं। अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य चढ़ाते हैं। पूजा में पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है; लहसून, प्याज वर्जित होता है। जिन घरों में यह पूजा होती है, वहाँ भक्तिगीत गाये जाते हैं।अंत में लोगो को पूजा का प्रसाद दिया जाता हैं।

उत्सव का स्वरूप

छठ पूजा चार दिवसीय उत्सव है। इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को तथा समाप्ति कार्तिक शुक्ल सप्तमी को होती है। इस दौरान व्रतधारी लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं। इस दौरान वे पानी भी ग्रहण नहीं करते।

नहाय खाय

पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी ‘नहाय-खाय’ के रूप में मनाया जाता है। सबसे पहले घर की सफाई कर उसे पवित्र किया जाता है। इसके पश्चात छठव्रती स्नान कर पवित्र तरीके से बने शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते हैं। घर के सभी सदस्य व्रति के भोजनोपरांत ही भोजन ग्रहण करते हैं। भोजन के रूप में कद्दू-दाल और चावल ग्रहण किया जाता है। यह दाल चने की होती है।

लोहंडा और खरना

दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी को व्रतधारी दिनभर का उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते हैं। इसे ‘खरना’ कहा जाता है। खरना का प्रसाद लेने के लिए आस-पास के सभी लोगों को निमंत्रित किया जाता है। प्रसाद के रूप में गन्ने के रस में बने हुए चावल की खीर के साथ दूध, चावल का पिट्ठा और घी चुपड़ी रोटी बनाई जाती है। इसमें नमक या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है। इस दौरान पूरे घर की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है।

संध्या अर्घ्य

तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को दिन में छठ का प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद के रूप में ठेकुआ, जिसे कुछ क्षेत्रों में टिकरी भी कहते हैं, के अलावा चावल के लड्डू, जिसे लड़ुआ भी कहा जाता है, बनाते हैं। इसके अलावा चढ़ावा के रूप में लाया गया साँचा और फल भी छठ प्रसाद के रूप में शामिल होता है।

शाम को पूरी तैयारी और व्यवस्था कर बाँस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है और व्रति के साथ परिवार तथा पड़ोस के सारे लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने घाट की ओर चल पड़ते हैं। सभी छठव्रति एक नियत तालाब या नदी किनारे इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से अर्घ्य दान संपन्न करते हैं। सूर्य को जल और दूध का अर्घ्य दिया जाता है तथा छठी मैया की प्रसाद भरे सूप से पूजा की जाती है; इस दौरान कुछ घंटे के लिए मेले जैसा दृश्य बन जाता है।

उषा अर्घ्य

चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदियमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। व्रति वहीं पुनः इकट्ठा होते हैं जहाँ उन्होंने पूर्व संध्या को अर्घ्य दिया था। पुनः पिछले शाम की प्रक्रिया की पुनरावृत्ति होती है। सभी व्रति तथा श्रद्धालु घर वापस आते हैं, व्रति घर वापस आकर गाँव के पीपल के पेड़ जिसको ब्रह्म बाबा कहते हैं वहाँ जाकर पूजा करते हैं। पूजा के पश्चात् व्रति कच्चे दूध का शरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूर्ण करते हैं जिसे पारण या परना कहते हैं।

व्रत

छठ उत्सव के केंद्र में छठ व्रत है जो एक कठिन तपस्या की तरह है। यह छठ व्रत अधिकतर महिलाओं द्वारा किया जाता है; कुछ पुरुष भी इस व्रत रखते हैं। व्रत रखने वाली महिलाओं को परवैतिन कहा जाता है। चार दिनों के इस व्रत में व्रति को लगातार उपवास करना होता है। भोजन के साथ ही सुखद शैय्या का भी त्याग किया जाता है। पर्व के लिए बनाये गये कमरे में व्रति फर्श पर एक कम्बल या चादर के सहारे ही रात बिताती हैं। इस उत्सव में शामिल होने वाले लोग नये कपड़े पहनते हैं। जिनमें किसी प्रकार की सिलाई नहीं की गयी होती है व्रति को ऐसे कपड़े पहनना अनिवार्य होता है। महिलाएँ साड़ी और पुरुष धोती पहनकर छठ करते हैं। ‘छठ पर्व को शुरू करने के बाद सालों साल तब तक करना होता है, जब तक कि अगली पीढ़ी की किसी विवाहित महिला इसके लिए तैयार न हो जाए। घर में किसी की मृत्यु हो जाने पर यह पर्व नहीं मनाया जाता है।’

ऐसी मान्यता है कि छठ पर्व पर व्रत करने वाली महिलाओं को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। पुत्र की चाहत रखने वाली और पुत्र की कुशलता के लिए सामान्य तौर पर महिलाएँ यह व्रत रखती हैं। पुरुष भी पूरी निष्ठा से अपने मनोवांछित कार्य को सफल होने के लिए व्रत रखते हैं।

सूर्य पूजा का संदर्भ

छठ पर्व मूलतः सूर्य की आराधना का पर्व है, जिसे हिन्दू धर्म में विशेष स्थान प्राप्त है। हिन्दू धर्म के देवताओं में सूर्य ऐसे देवता हैं जिन्हें मूर्त रूप में देखा जा सकता है।

सूर्य की शक्तियों का मुख्य श्रोत उनकी पत्नी ऊषा और प्रत्यूषा हैं। छठ में सूर्य के साथ-साथ दोनों शक्तियों की संयुक्त आराधना होती है। प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण (ऊषा) और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण (प्रत्यूषा) को अर्घ्य देकर दोनों का नमन किया जाता है।

सूर्योपासना की परम्परा

भारत में सूर्योपासना ऋग वैदिक काल से होती आ रही है। सूर्य और इसकी उपासना की चर्चा विष्णु पुराण, भगवत पुराण, ब्रह्मा वैवर्त पुराण आदि में विस्तार से की गयी है। मध्य काल तक छठ सूर्योपासना के व्यवस्थित पर्व के रूप में प्रतिष्ठित हो गया, जो अभी तक चला आ रहा है।

देवता के रूप में

सृष्टि और पालन शक्ति के कारण सूर्य की उपासना सभ्यता के विकास के साथ विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग रूप में प्रारम्भ हो गयी, लेकिन देवता के रूप में सूर्य की वन्दना का उल्लेख पहली बार ऋगवेद में मिलता है। इसके बाद अन्य सभी वेदों के साथ ही उपनिषद् आदि वैदिक ग्रन्थों में इसकी चर्चा प्रमुखता से हुई है। निरुक्त के रचियता यास्क ने द्युस्थानीय देवताओं में सूर्य को पहले स्थान पर रखा है।

मानवीय रूप की कल्पना

उत्तर वैदिक काल के अन्तिम कालखण्ड में सूर्य के मानवीय रूप की कल्पना होने लगी। इसने कालान्तर में सूर्य की मूर्ति पूजा का रूप ले लिया। पौराणिक काल आते-आते सूर्य पूजा का प्रचलन और अधिक हो गया। अनेक स्थानों पर सूर्यदेव के मंदिर भी बनाये गये।

आरोग्य देवता के रूप में

पौराणिक काल में सूर्य को आरोग्य देवता भी माना जाने लगा था। सूर्य की किरणों में कई रोगों को नष्ट करने की क्षमता पायी गयी। ऋषि-मुनियों ने अपने अनुसन्धान के क्रम में किसी खास दिन इसका प्रभाव विशेष पाया। सम्भवत: यही छठ पर्व के उद्भव की बेला रही हो। भगवान कृष्ण के पौत्र शाम्ब को कुष्ठ रोग हो गया था। इस रोग से मुक्ति के लिए विशेष सूर्योपासना की गयी, जिसके लिए शाक्य द्वीप से ब्राह्मणों को बुलाया गया था।

पौराणिक और लोक कथाएँ

छठ पूजा की परम्परा और उसके महत्त्व का प्रतिपादन करने वाली अनेक पौराणिक और लोक कथाएँ प्रचलित हैं।

रामायण से

एक मान्यता के अनुसार लंका विजय के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना की। सप्तमी को सूर्योदय के समय पुनः अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था।

महाभारत से

एक अन्य मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्यदेव की पूजा शुरू की। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। वह प्रतिदिन घण्टों कमर तक पानी में ख़ड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य देते थे। सूर्यदेव की कृपा से ही वे महान योद्धा बने थे। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही पद्धति प्रचलित है।

कुछ कथाओं में पांडवों की पत्नी द्रौपदी द्वारा भी सूर्य की पूजा करने का उल्लेख है। वे अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लम्बी उम्र के लिए नियमित सूर्य पूजा करती थीं।

पुराणों से

एक कथा के अनुसार राजा प्रियवद को कोई संतान नहीं थी, तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनायी गयी खीर दी। इसके प्रभाव से उन्हें पुत्र हुआ परन्तु वह मृत पैदा हुआ। प्रियवद पुत्र को लेकर श्मशान गये और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त ब्रह्माजी की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूँ। हे! राजन् आप मेरी पूजा करें तथा लोगों को भी पूजा के प्रति प्रेरित करें। राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी।

सामाजिक/सांस्कृतिक महत्त्व

छठ पूजा का सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष इसकी सादगी पवित्रता और लोकपक्ष है। भक्ति और आध्यात्म से परिपूर्ण इस पर्व मेेंं बाँस निर्मित सूप, टोकरी, मिट्टी के बर्त्तनों, गन्ने का रस, गुड़, चावल और गेहूँ से निर्मित प्रसाद और सुमधुर लोकगीतों से युक्त होकर लोक जीवन की भरपूर मिठास का प्रसार करता है।

शास्त्रों से अलग यह जन सामान्य द्वारा अपने रीति-रिवाजों के रंगों में गढ़ी गयी उपासना पद्धति है। इसके केंद्र में वेद, पुराण जैसे धर्मग्रन्थ न होकर किसान और ग्रामीण जीवन है। इस व्रत के लिए न विशेष धन की आवश्यकता है न पुरोहित या गुरु के अभ्यर्थना की। जरूरत पड़ती है तो पास-पड़ोस के सहयोग की जो अपनी सेवा के लिए सहर्ष और कृतज्ञतापूर्वक प्रस्तुत रहता है। इस उत्सव के लिए जनता स्वयं अपने सामूहिक अभियान संगठित करती है। नगरों की सफाई, व्रतियों के गुजरने वाले रास्तों का प्रबन्धन, तालाब या नदी किनारे अर्घ्य दान की उपयुक्त व्यवस्था के लिए समाज सरकार के सहायता की राह नहीं देखता। इस उत्सव में खरना के उत्सव से लेकर अर्ध्यदान तक समाज की अनिवार्य उपस्थिति बनी रहती है। यह सामान्य और गरीब जनता के अपने दैनिक जीवन की मुश्किलों को भुलाकर सेवा-भाव और भक्ति-भाव से किये गये सामूहिक कर्म का विराट और भव्य प्रदर्शन है।

छठ गीत

लोकपर्व छठ के विभिन्न अवसरों पर जैसे प्रसाद बनाते समय, खरना के समय, अर्घ्य देने के लिए जाते हुए, अर्घ्य दान के समय और घाट से घर लौटते समय अनेकों सुमधुर और भक्ति-भाव से पूर्ण लोकगीत गाये जाते हैं।

  • ‘केलवा जे फरेला घवद से, ओह पर सुगा मेड़राय
  • काँच ही बाँस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए’
  • सेविले चरन तोहार हे छठी मइया। महिमा तोहर अपार।
  • उगु न सुरुज देव भइलो अरग के बेर।
  • निंदिया के मातल सुरुज अँखियो न खोले हे।
  • चार कोना के पोखरवा
  • हम करेली छठ बरतिया से उनखे लागी।

इस गीत में एक ऐसे तोते का जिक्र है जो केले के ऐसे ही एक गुच्छे के पास मंडरा रहा है। तोते को डराया जाता है कि अगर तुम इस पर चोंच मारोगे तो तुम्हारी शिकायत भगवान सूर्य से कर दी जाएगी जो तुम्हें नहीं माफ करेंगे, पर फिर भी तोता केले को जूठा कर देता है और सूर्य के कोप का भागी बनता है। पर उसकी भार्या सुगनी अब क्या करे बेचारी? कैसे सहे इस वियोग को? अब तो सूर्यदेव उसकी कोई सहायता नहीं कर सकते, उसने आखिर पूजा की पवित्रता जो नष्ट की है।

केरवा जे फरेला घवद से ओह पर सुगा मेड़राय

उ जे खबरी जनइबो अदिक (सूरज) से सुगा देले जुठियाए

उ जे मरबो रे सुगवा धनुक से सुगा गिरे मुरछाये

उ जे सुगनी जे रोये ले वियोग से आदित होइ ना सहाय देव होइ ना सहाय

काँच ही बाँस के बहँगिया, बहँगी लचकति जाए… बहँगी लचकति जाए… बात जे पुछेले बटोहिया बहँगी केकरा के जाए? बहँगी केकरा के जाए? तू त आन्हर हउवे रे बटोहिया, बहँगी छठी माई के जाए… बहँगी छठी माई के जाए… काँच ही बाँस के बहँगिया, बहँगी लचकति जाए… बहँगी लचकति जाए…

केरवा जे फरेला घवद से ओह पर सुगा मेंड़राय… ओह पर सुगा मेंड़राय… खबरी जनइबो अदित से सुगा देले जूठियाय सुगा देले जूठियाय… ऊ जे मरबो रे सुगवा धनुष से सुगा गिरे मुरछाय… सुगा गिरे मुरछाय… केरवा जे फरेला घवद से ओह पर सुगा मेंड़राय… ओह पर सुगा मेंड़राय…

पटना के घाट पर नारियर नारियर किनबे जरूर… नारियर किनबो जरूर… हाजीपुर से केरवा मँगाई के अरघ देबे जरूर… अरघ देबे जरुर… आदित मनायेब छठ परबिया वर मँगबे जरूर… वर मँगबे जरूर… पटना के घाट पर नारियर नारियर किनबे जरूर… नारियर किनबो जरूर… पाँच पुतर, अन, धन, लछमी, लछमी मँगबे जरूर… लछमी मँगबे जरूर… पान, सुपारी, कचवनिया छठ पूजबे जरूर… छठ पूजबे जरूर… हियरा के करबो रे कंचन वर मँगबे जरूर… वर मँगबे जरूर… पाँच पुतर, अन, धन, लछमी, लछमी मँगबे जरूर… लछमी मँगबे जरूर… पुआ पकवान कचवनिया सूपवा भरबे जरूर… सूपवा भरबे जरूर… फल-फूल भरबे दउरिया सेनूरा टिकबे जरूर… सेनूरा टिकबे जरुर… उहवें जे बाड़ी छठी मईया आदित रिझबे जरूर… आदित रिझबे जरूर… काँच ही बाँस के बहँगिया, बहँगी लचकति जाए… बहँगी लचकति जाए… बात जे पुछेले बटोहिया बहँगी केकरा के जाए? बहँगी केकरा के जाए? तू त आन्हर हउवे रे बटोहिया, बहँगी छठी माई के जाए… बहँगी छठी माई के जाए..